ये स्कूल की बिल्डिंग में एशियन पेंट की चमक नही है


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ये स्कूल की बिल्डिंग में एशियन पेंट की चमक नही है बल्कि चमक है,ईमानदारी और समर्पण की।

सेंट एंथोनी कॉन्वेंट गर्ल्स इंटर कॉलेज,प्रयागराज,13 साल बिताये है,यहां।

चप्पे चप्पे पर बचपन की कहानियां, चॉकलेट के रैपर की तरह लिपटी हुई है।
आज कई दिनों से याद आ रही थी स्कूल की और अनायास जब उन रास्तों से गुजरे तो गाड़ी खुद ब खुद रुक गयी।

फिर तो अंदर आना, मंदिर में आने जैसा था।मेरी खुशी का कोई पारावार उस वक़्त नही था जब मेरी सारी टीचर्स ने मुझे मेरे नाम से बुलाया,लगभग सभी को मेरा नाम याद था।मानो लगा जैसे कोई अवार्ड मिल गया मुझको।

प्रिंसिपल सिस्टर ने भी बहुत विनम्रता से बात की।सिस्टर्स वो वैसे भी जीवंत विद्यालय होती है खुद में।उन्होंने मुझे बच्चो को सम्बोधित करने के लिये भी बुलाया।

उसके बाद सबसे पहले भाग कर गयीं मैं,आर्ट रूम।जहां मैंने ब्रश पकड़ना सीखा।साथ ही याद किया मुझे रंगों के उतार चढ़ाव को समझ देने वाली मेरी टीचर स्वर्गीय दमयन्ती शर्मा जी को जो अब सिर्फ यादों में ही है।वर्तमान की कला शिक्षिका मेरी सहेली देवीना से भी अरसों बाद मुलाक़ात हुई।

फिर मेरी टॉफी,गुब्बारे, रंग,परीक्षा के नम्बरों की मुराद जैसी बचपन की ख़्वाहिश पूरी करने वाली इबादतगाह में जाकर,मेरे माँबाप को बेहतर परवरिश के लिये शुक्रिया कहा।
सच मे,इबादतगाह के नाम अलग होते है पर मन एक सा शांत होता है सब जगह।

एक और राज़ की बात बताये,मेरे टीचर्स मुझे पेंटिंग से ज्यादा मेरे डांस के लिये जानते है और क्लास 12th में टॉप किया था हमने स्कूल में।

मैं आज इस विषय पर बहुत कुछ लिख सकती हूँ,बच्चों की तोतली लम्बी लम्बी कहानियों की तरह।

बस अंत मे इतना ही कि देश मे सबसे समृद्ध विद्यालय होने चाहिये,क्योकि,नेता,अभिनेता,डॉक्टर, इंजीनिय,टीचर,वकील,आदि आदि,इन्ही विद्यालयों से निकलते थे,निकलते है और आगे भी निकलते रहेगें।

जय हिंद
जय भारत

अंजलि विशाल संकल्प

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